Jaishankar Prasadजयशंकर प्रसाद (30 जनवरी, 1889 - 14 जनवरी, 1937); जयशंकर प्रì;ाद; हिन्दी के छायावादी युग के चार प्रमुख स्तंभों में से एक हैं। वह कहानी और उपन्यास लेखन में नाटक लेखन से ज़्यादा आधुनिक थे। कहानी को आधुनिक जगत की विधा बनाने में उनका योगदान अद्वितीय है। यह उन्हीं का कला-कौशल है कि उन्होंने आम व्यक्ति के जीवन की घटनाओं के वाह्य और आंतरिक विचलन को सैद्धांतिक आधार प्रदान किया। कविता, नाटक, कहानी, उपन्यास सभी विधाओं में लिखने वाले जयशंकर प्रसाद की प्रारम्भिक कृतियां, खासतौर पर नाटकों में प्राच्य भाषा संस्कृत और ठेठ देसज शब्दों का प्रभाव दिखता है। स्कंदगुप्त, चंद्रगुप्त, ध्रुवस्वामिनी जैसे लोकप्रिय नाटकों में यह स्पष्ट नजर आता है। वहीं, उपन्यास कंकाल में हिन्दू धर्म के तथाकथित ठेकेदारों की सच्चाई को उजागर किया है, तो तितली सामाजिक पृष्ठभूमि पर लिखा गया उनका दूसरा उपन्यास है, इसमें नारी की छवि एक आदर्श प्रेमिका और आदर्श पत्नी की है। उनकी कहानियों और नाटक के विषय सामाजिक, ऐतिहासिक और पौराणिक हैं। निश्चित ही इन सभी कृतियों में एक दार्शनिक झुकाव दिखाई देता है। इसका एक कारण उनके स्वयं के परिवेश से रहा होगा, जब बचपन में उनके पिता के गुज़र जाने के बाद परिवार आर्थिक तंगी से जूझते हुए कठिनाइयों का सामना कर रहा था। इसी परिस्थिति में उन्होंने स्वयं को बड़ा होता हुआ पाया। इसके चलते पढ़ाई पूरी नहीं कर पाए, बावज़ूद इसके स्वाध्याय जारी रखा और साहित्य, भाषा, इतिहास में उत्कृष्ट ज्ञान अर्जित किया। वह कहानियों के माध्यम से समाज की कुरीतियों पर चोट करने से भी नहीं चूकते। खड़ी भाषा का प्रयोग, और आधुनिक पीढ़ी में हिन्दी को लोकप्रिय बनाने का श्रेय उन्हीं को जाता है। प्रसाद ने एक लौ प्रज्जवलित कर दी थी, जिसका बाद के लेखकों ने अनुसरण किया। मात्र 48 वर्ष क Read More Read Less
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